"ज़िंदगी एक अंतहीन सफर की तरह है!" मंजिल तो मौत है ही...पर यह शब्द अपने आप मे नकारात्मकता लिये हुए है। जहाँ इसका जिक्र हुआ, हम सब कुछ छोड़कर बस इसे ही सत्य मानते हुए अपने अपने मलाल गिनने लगते हैं!
मौत अगर सच्चाई है, तो जीवन सबसे बड़ा सच है! एक ऐसा सच जिसे आपको तब तक निभाना है, जब तक कि आपकी सांस चल रही है।
कितनी अजीब बात है न हमने जिसे देखा नहीं, महसूस नहीं किया....उसे सही मानकर जो दिख रहा है, जिसे महसूस कर रहे हैं, उसे उपेक्षित करते हैं।
हम सभी को अपनी अपनी जिंदगी के मलाल कम करने चाहिये! कुछ अधूरी इच्छाएं जो रख छोड़ी हो कहीं....घर की जवाबदारी में, या परिवार की खुशी के लिये या कुछ भूला दिया हो जो वक्त के थपेड़ों में!
कुछ ऐसा जो पीछे छोड़ आएं हो बहुत, या कुछ वो जो कुछ 'चार लोगों' की नज़रों के डर से भूल आए हों। कुछ जो मन में दबा के बैठे हैं किसी से कहने के लिए! और अब कहने से कुछ मतलब नहीं रह गया हो। कुछ ऐसा जो तब के लिये रख छोड़ा हो कि जब पैसा होगा तब करेंगे! और अब वो करने के लिये उम्र की गम्भीरता आड़े आ रही हो।
कुछ समय के लिये भूल जाना सबकुछ। और जिसे आईने में देखते हो रोज, उससे पूछना की वो कितना खुश है तुमसे? पूरी दुनियां को खुश करने की कोशिश की है न! अब कोशिश करो आईने में दिख रहे शख्स खुशी रखने की।
जिंदगी के अंतिम पलों मे जब सब भूलने लगेंगे...तब भी कुछ सूखे गुलाब, कुछ डायरी के पन्ने...इक निगाह, कुछ नगमे, कुछ रास्ते, वो छतें और मुंडेरे...थोड़ी बारिश और वो गर्माहट भरी हथेलियों की याद साथ रहेंगी।
उन्हें संजो लेना अपने अंतिम सफर के लिये। क्योंकि वही एक खुशी है जो हर हाल में अपनी है।
वो ही तुम्हे ताबूत में चैन से सोते रहने की ताक़त देगा।