Thursday 11 July 2019

अभिव्यक्ति..............


तुम आना कभी सुनाऊंगा,
कुछ छोटे छोटे किस्से हैं।
कुछ दर्पण हैं इस जीवन के,
कुछ अंतर्मन के हिस्से हैं।
जो कोरे कोरे पन्ने हैं,
उनमे परित्यक्त सी तड़पन है,
कुछ  दिन की स्थिरता भी है,
कुछ रातों का सूनापन है।
इक टीस थी सबकुछ पाने की;
कोई क्या जाने कब निकल गई।
जीवन ने नुस्खे अजमाए ,
सारी परिभाषा बदल गई।
मैंने पतझड़ भी देखा है ,
गर्मी की लू भी झेला हूँ ।
अब तो सारे संघर्षों में ,
लगता है निपट अकेला हूँ।
अब पीड़ा की अनुभूति से लेकर,
साहस की सीमाओं तक,
मेरा तो सबकुछ छूट गया।

इक हृदय था वो भी टूट गया।।

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